मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस बेटे की फांसी की सजा को बरकरार रखा, जिसने अपनी ही मां की नृशंस हत्या कर उसके शरीर के अंगों को पकाकर खाने का प्रयास किया था। अदालत ने इस घटना को नरभक्षण का मामला करार देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्लभ और वीभत्स अपराध की श्रेणी में आता है, जिसमें सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती। जस्टिस रेवती मोहिते ढेरे और जस्टिस पीके चव्हाण की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि क्रूरता की चरम सीमा है, जिसे देखते हुए दोषी की मौत की सजा पूरी तरह उचित है।
इससे पहले, सुनील कुचकोरावी नामक दोषी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश किया गया था। अदालत ने उसे सूचित किया कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 30 दिन के भीतर अपील कर सकता है। वर्तमान में सुनील पुणे की येरवडा सेंट्रल जेल में बंद है।
सेशन कोर्ट का फैसला
कोल्हापुर की सेशन कोर्ट ने जुलाई 2021 में सुनील को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला बताया गया था। कोर्ट ने कहा था कि मां की हत्या इतनी क्रूर और असंवेदनशील थी कि इसके लिए कोई नरमी बरतने की गुंजाइश नहीं है। निचली अदालत ने इसे अत्यधिक क्रूर और अमानवीय कृत्य माना, जिसे बयां करने के लिए शब्द भी कम पड़ गए।
शराब के पैसे न देने पर हुई हत्या
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 28 अगस्त 2017 को सुनील ने अपनी 63 वर्षीय मां यलम्मा की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि उसने उसे शराब के लिए पैसे नहीं दिए थे। हत्या के बाद उसने अपनी मां के हृदय और लीवर जैसे महत्वपूर्ण अंग निकाले और उन्हें तलने का प्रयास किया। सरकारी वकील ने इस जघन्य अपराध के लिए किसी भी तरह की राहत देने का विरोध किया।
सुधार की कोई संभावना नहीं
हाई कोर्ट ने कहा कि दोषी ने न केवल अपनी मां की हत्या की, बल्कि उसके अंगों को पकाने की कोशिश की, जो कि एक अत्यंत गंभीर और निंदनीय अपराध है। कोर्ट ने कहा कि दोषी की मानसिक स्थिति को देखते हुए उसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। यहां तक कि अगर उसकी मौत की सजा कम करके उसे आजीवन कारावास दिया जाता है, तब भी उसके भविष्य में फिर से ऐसे जघन्य अपराध करने की संभावना बनी रहती है।