नवरात्रि का पावन पर्व श्रद्धा और भक्ति का महोत्सव है, जिसमें मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना का विशेष महत्व है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्ध चंद्र विराजमान होने के कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के साथ विवाह के समय मां पार्वती ने इस दिव्य स्वरूप को धारण किया था।
मां चंद्रघंटा की आराधना से साधक को अलौकिक शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके भक्तों को दिव्य अनुभूतियाँ होती हैं – रहस्यमयी सुगंधियों का एहसास, अद्वितीय ध्वनियों की सुनाई देना, और ऐसा प्रतीत होना मानो कोई अदृश्य शक्ति उनके पास है। हालांकि, इन अनुभवों के दौरान साधक को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि मां की कृपा प्राप्त करना सरल नहीं होता, यह एक उच्च आध्यात्मिक स्थिति का संकेत है।
मां चंद्रघंटा की वीरता की महिमा उनके महिषासुर संहार से जुड़ी है। वह हमेशा युद्ध के लिए तत्पर और निर्भीक मुद्रा में रहती हैं, लेकिन उनके स्वरूप में अपार शांति और कल्याण का भाव निहित है। उनकी उपासना से साधक निर्भीकता, वीरता और सौम्यता का अद्भुत संतुलन प्राप्त करता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से जीवन की समस्त बाधाएँ दूर होती हैं और साधक सांसारिक कष्टों से मुक्त हो जाता है।
मां की आराधना में दूध और खीर का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है, साथ ही शहद अर्पित करना भी एक विशेष परंपरा है। मां को सुनहरे वस्त्र और सिंदूर अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं, क्योंकि सिंह उनके प्रिय वाहन हैं, और यह रंग उन्हें अत्यधिक प्रिय है।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप शांति, सौंदर्य और आलौकिकता का प्रतीक है। उनकी आराधना से भक्तों को न केवल शारीरिक, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी वरदान मिलता है।