रविवार, 22 दिसंबर को महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने धर्म, समाज और पर्यावरण से जुड़े अहम मुद्दों पर अपने विचार रखे। उन्होंने धर्म के सही मायने और उसके महत्व को समझाया, साथ ही समाज में व्याप्त गलत धारणाओं और अत्याचारों पर भी प्रकाश डाला।
धर्म का सही ज्ञान जरूरी है
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि धर्म का अधूरा और गलत ज्ञान लोगों को अधर्म की ओर ले जाता है। धर्म सत्य, अहिंसा और समानता की भावना को बढ़ावा देता है। भागवत के अनुसार, धर्म सृष्टि के आरंभ से लेकर अंत तक की संहिता है, और इसे सही शिक्षा के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
धर्म के नाम पर अत्याचार क्यों होते हैं?
भागवत ने धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों की वजह गलतफहमियों और अधूरी जानकारी को बताया। उनका मानना है कि संप्रदाय समाज को जोड़ने का कार्य करता है, न कि उसे तोड़ने का। उन्होंने कहा कि धर्म को समझने के लिए बुद्धि और विवेक का उपयोग करना आवश्यक है, ताकि समाज में शांति और सामंजस्य बना रहे।
मंदिर-मस्जिद विवाद पर मोहन भागवत का बयान
भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में दिए अपने बयान का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि रोजाना मंदिर-मस्जिद विवाद उठाना सही नहीं है। उनका मानना था कि कुछ लोग इस विवाद को अपने राजनीतिक फायदे के लिए बढ़ाते हैं, जो समाज के लिए हानिकारक है। उन्होंने भारत को एक ऐसा आदर्श मॉडल बनाने की बात की, जो दुनिया को सद्भावना और एकता का संदेश दे सके।
जाति व्यवस्था पर सख्त बयान
भागवत ने समाज में जाति व्यवस्था को लेकर भी महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जाति भगवान ने नहीं बनाई, यह पंडितों की देन है। समाज को जातिवाद से ऊपर उठकर सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने आरक्षण की आवश्यकता पर भी बात की, और कहा कि यह तब तक जारी रहना चाहिए जब तक इसकी जरूरत बनी रहती है।
मांसाहार और पर्यावरण पर विचार
RSS प्रमुख ने मांसाहार के प्रभाव पर भी अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि मांसाहार से जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्या बढ़ती है, और अगर मांसाहार बंद हो जाए, तो कत्लखाने भी बंद हो जाएंगे। उनका मानना था कि इस पहलू पर समाज को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।