Maharana Pratap Jayanti 2022: वीर महाराणा प्रताप जयंती, जानें इस महान योद्धा के जीवन से जुड़ी कुछ खास और आश्चर्य भरी बातें.. - News4u36
   
 

Maharana Pratap Jayanti 2022: वीर महाराणा प्रताप जयंती, जानें इस महान योद्धा के जीवन से जुड़ी कुछ खास और आश्चर्य भरी बातें..

Maharana Pratap

महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को पूरे भारत देश में मनाई जा रही है। महाराणा प्रताप को एक वीर गर्व और वीरता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 9 मई 1540 को एक हिंदू राजपूत परिवार में हुआ था।

Maharana Pratap Jayanti 2022: मई, 1540  को जन्मे महाराणा प्रताप को हमारे देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए याद किया जाता है। महाराणा ने उस समय मुगल साम्राज्य के खिलाफ बड़ी बहादुरी से लड़ाई लड़ी जब दूसरों ने अकबर के वर्चस्व को स्वीकार कर नतमस्तक हो गए थे। आज उनकी याद में जयंती मनाई जा रही है। 

Maharana Pratap Jayanti 2022: की कुछ खास बातें 

•महाराणा प्रताप जी का जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर में हुआ था। उन्हें बचपन और युवावस्था में कीका नाम से  पुकारा जाता था (कीका का अर्थ होता है – ‘बेटा’)। ये नाम उन्हें भीलों से मिला था जिनकी संगत में उन्होंने अपने शुरुआती दिन बिताए थे। 

• महाराणा प्रताप के पास एक चेतक नाम का घोड़ा था जो उन्हें बहुत प्रिय था। प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक का अपना मुख्य स्थान है। उसकी फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी ने कई बड़ी से बड़ी लड़ाइयां जीतने में अहम भूमिका निभाई। हल्दीघाटी युद्ध के समय उसे भी गंभीर चोटें आईं, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।

•1582 में दिवेर के युद्ध में राणा प्रताप ने उन सभी क्षेत्रों पर फिर से कब्जा किया, जो कभी मुगलों के हाथों गंवा दिए थे।  कर्नल जेम्स टॉ ने मुगलों के साथ हुए इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहकर संबोधित किया था। 1585 तक लंबे संघर्ष के पश्चात वे मेवाड़ को मुक्त कराने में सफल रहे। महाराणा प्रताप जब गद्दी पर आसन थे, उस समय जितनी मेवाड़ भूमि पर उनका वर्चस्व था, पूर्ण रूप से उतनी भूमि अब उनके अधीनस्थ थी। 

•1596 में शिकार खेलते वक्त उन्हें गहरी चोट लगी जिससे वह कभी उबर ही नहीं पाए। जिसके कारण 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका निधन हो गया। 

• माना जाता है महाराणा प्रताप के भाले का वजन कुल 81 किलो का था, साथ ही उनके छाती का कवच 72 किलो का। भाला, कवच, ढाल और दो तलवारों के साथ उनके पूरे अस्त्र और शस्त्रों को मिलाकर कुल वजन 208 किलो था।

•वैसे तो महाराणा प्रताप ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ीं थी किंतु जो लड़ाई सबसे ऐतिहासिक थी- वह हल्दीघाटी का युद्ध था जिसमें मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना से महाराणा का आमना-सामना हुआ। 1576 में हुए इस घातक युद्ध में लगभग 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों पर कुच किया। यह मध्यकाल के भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है। इसी युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक गंभीर रूप से जख्मी हो गया था। युद्ध के पश्चात मेवाड़, चित्तौड़, कुंभलगढ़,गोगुंडा, और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया था। अधिकांश राजपूत राजा मुगलों के अधीनस्थ हो गए लेकिन महाराणा ने कभी भी अपने स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की कभी भी अधीनता को स्वीकार नहीं किया और कई सालों तक संघर्ष करते रहे। 

•हल्दीघाटी युद्ध के दौरान जब मुगल सेना महाराणा के पीछे पड़ गई थी, तब चेतक ने ही राणा को अपनी पीठ पर बिठाकर, कई फीट ऊंचे लंबे नाले को छलांग लगा कर पार किया था। आज भी हल्दी घाटी में चेतक की स्मृति में समाधि बनी हुई है।

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