बुधवार के दिन राम नवमी के साथ ही माता के 9 दिनो के नवरात्र का समापन हुआ. पूरे देशभर में सभी श्रद्धालुओं ने नम आँखों के साथ माता को बिदाई दी गई.
छत्तीसगढ़ के सबसे प्रसिद्ध दर्शनीय तीर्थ डोंगरगढ़(Dongargarh) में भी देर रात तक माता बमलेश्वरी की ज्योति कलश के विसर्जन का कार्यक्रम हुआ . साथ ही शहर के दूसरे देवी मंदिरों के ज्योति कलशों का भी बुधवार की रात को स्थानीय महावीर तालाब में विसर्जन हुआ.
बता दें कि माता बमलेश्वरी के धाम Dongargarh में नवरात्र के पर्व में भक्तो का ताता लगा हुआ रहता है,सभी श्रद्धालु माता के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद पाने मंदिर पहुंचे हैं।
Whatsapp Channel |
आख़िरी दिन महिलायें ज्योति सिर पर लिये झांकी स्वरूप में मंदिर से तालाब जाती हैं. विसर्जन के इस कार्यक्रम में मंदिर ट्रस्ट, शासन प्रसाशन, रेलविभाग के साथ स्थानीय नगर वासी बढ़चड़कर अपना सहयोग देते हैं .
महानवमी के दिन मंदिर की मनमोहक झांकी निर्धारित रूट के अनुसार मुंबई हावड़ा रेलवे ट्रैक से होकर शीतला मंदिर के सामने से स्थानीय महावीर तालाब पर पहुची. इस बीच मंदिर और शीतला मंदिर की माई ज्योत दोनो की परंपरागत भेंट भी हुई. जिसके बाद ज्योत विसर्जन के लिए निकली. डोंगरगढ़ में काफी लंबे समय से ये परंपरा भी चली आ रही है.
वहीं आज भी यहां महाराष्ट्र के शहनाई वादन की परंपरा कायम है, महाराष्ट्र के सालेकसा से शहनाई बजाने वालों की टीम यहां आती है. जो की पर्व की शुरुआत से लेकर नवरात्र में आरती और विसर्जन के दौरान शहनाई वादन करते हैं।
शहनाई बजाने वाले ये कलाकार Dongargarh में 9 दिनों तक रहकर सेवा करते हैं. जब ज्योति कलशों की शोभायात्रा निकलती है तब से लेकर विसर्जन तक शहनाई बजती रहती है. कई दशकों से ये परंपरा ऐसे ही अनवरत चलती आ रही है.
नवरात्र की पंचमी तिथि को माँ बम्लेश्वरी देवी को पहनाया गया स्वर्ण मुकुट
बता दें कि माँ बम्लेश्वरी की नवरात्रि के पंचमी तिथि को माता कात्यानी के स्वरूप के रूप में पूजा की गई. उसी दिन मां बमलेश्वरी ट्रस्ट समिति एवं भक्तों के सहयोग के द्वारा माता को करीब 450 ग्राम सोने से बनी एक मुकुट भेंट की गई. जिसकी लागत करीब 35 लाख रुपए तक हैं. यही पूरे नवरात्र में भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र रही।