नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस और छोटी दिवाली भी कहा जाता है, बिलासपुर में खास धूमधाम से मनाई जाएगी। इस दिन की खासियत है बुराई का खात्मा और रोशनी का स्वागत। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट नरकासुर का वध किया था और लोगों को उसके अत्याचारों से आजादी दिलाई थी। तभी से, इस पर्व पर लोग नरकासुर वध के प्रतीक रूप में बुराई का अंत करते हुए नए उजाले का स्वागत करते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित देव कुमार पाठक बताते हैं कि सूर्योदय से पहले स्नान करना और घर की साफ-सफाई करना शुभ होता है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण, यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है। घर के कोनों और दरवाजों पर दीप जलाए जाते हैं ताकि खुशियों और समृद्धि का प्रवेश हो सके। इस दिन जलाए गए दीपों को “यम दीप” कहा जाता है, जो परिवार को हर तरह की विपदा से सुरक्षित रखने का प्रतीक होते हैं।
रौनक भरे बाजार और जगमगाते दीप
नरक चतुर्दशी पर बाजारों में भी खूब चहल-पहल रहती है। शाम होते ही हर घर में आंगन और दरवाजे दीपों से सज जाते हैं। खासकर मिट्टी के दीयों का अपना महत्व होता है, और पूरे परिवार के लोग मिलकर इन दीयों की रोशनी में अपनी खुशियां बांटते हैं। घरों में स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं, और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है।
नरक चतुर्दशी की रात बिलासपुर के हर कोने में जगमगाहट और उत्साह का रंग बिखरा होता है। दीपों की ये रोशनी दिवाली के आगमन का संदेश भी देती है और हर किसी को एक नई शुरुआत का एहसास कराती है।